“शैल-उत्सव” – अखिल भारतीय मूर्तिकला शिविर

प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित वास्तुकला एवं योजना संकाय,डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के टैगोर मार्ग परिसर में लखनऊ विकास प्राधिकरण के सहयोग से हुए आठ दिवसीय समकालीन मूर्तिकला शिविर में सभी समकालीन मूर्तिकारों ने अपने अपने मूर्तिशिल्प को अंतिम रूप देकर शिविर को पूर्ण किया। "प्रकृति" विषय पर सभी मूर्तिकारों ने अपने भावनाओं को बखूबी पत्थर को तराश कर सुंदर सुंदर समकालीन मूर्तिशिल्प सृजित किया।

मेरी कृतियों के संदर्भ में

मनुष्य अपने पूरे जीवन के उन समस्त अनुभवों का एक सम्पूर्ण कोश होता है। वही कलाकार के सृजन हेतु प्रेरणा के कारक बनते हैं। कलाकार जब भी किसी कृति का सृजन करता है, वह उसकी भावनाएं एवं जीवन यात्रा के दौरान संकलित अनुभवों का प्रछ्न्न रूप होता है। जो कभी मूर्त या अमूर्त रूप में प्रकट होता है। हम सब कला शृजन के लिए भावो से परिपूर्ण आकारों कि खोज करते हैं। मैं भी अपने मन के अंदर उत्पन्न आकारों और उनकी भाषा को पढ़ने की कोशिश करता हूँ। मैंने यह जानने की कोशिश नहीं की है कि मेरे कृतियों में आकार ज्यामितीय रेखाओं पर क्यूँ आधारित होते हैं। बल्कि मेरी कृतियां जिन आकारों में खुद संवाद कर सके, बोलें इस पर ज्यादा केन्द्रित हैं। सृजन के दौरान मनो-भाव का संवेग अति तीव्र होता है। मैं उन मानो-भाव तथा उसकी प्रचंड ऊर्जा को अनुभूति करने की कोशिश करता हूँ। मेरा यह मानना है कि किसी भी रचना के समस्त अंगों की व्याख्या उतनी आवश्यक नहीं है, जितनी उसकी विशिष्ट संरचना के साथ उसकी अंतर्निहित ऊर्जा की अभिव्यक्ति की। जो मैंने अपनी कृति पोट्रेट ऑफ ए हॉर्स तथा टाइम ऑफ फ्लाइट में सरल रेखाओं के साथ उसके अंतर्निहित शक्ति के साथ उसकी संपूर्णता को अंकित किया है। सृजन में आकारिक सौन्दर्य के साथ वैचारिक संवेग का होना आवश्यक है।.......

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