लखनऊ, 20 अक्टूबर 2024: प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित वास्तुकला एवं योजना संकाय,डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के टैगोर मार्ग परिसर में लखनऊ विकास प्राधिकरण के सहयोग से हो रहे आठ दिवसीय समकालीन मूर्तिकला शिविर के सातवें दिन सभी समकालीन मूर्तिकारों ने अपने अपने मूर्तिशिल्प को अंतिम रूप देकर शिविर को पूर्ण किया। प्रकृति विषय पर सभी कलाकार अपने भावनाओं को बखूबी पत्थर को तराश कर सुंदर सुंदर समकालीन मूर्तिशिल्प सृजित किया है।
मूर्तिकार राजेश कुमार ने बताते हैं कि रचनात्मक यात्रा मुक्ति और तरलता के लोकाचार द्वारा निर्देशित है। जबकि मेरी मूर्तियां बायोमॉर्फिक रूपों की झलक रखती हैं, वे पारंपरिक परंपराओं से हटकर एक अलग दिशा तय करती हैं। यह प्रस्थान कठोर परिभाषाओं या सीमाओं से मुक्त होकर, रूप और अभिव्यक्ति की मुक्त-प्रवाह वाली खोज की अनुमति देता है। भावनाओं के असीम दायरे को अपनी प्रेरणा के रूप में अपनाते हुए, मैं सहज अनुग्रह के साथ मूर्तिकला करता हूं, जिससे मेरे हाथों को मानव अनुभव के सार को कला के मूर्त कार्यों में प्रसारित करने की अनुमति मिलती है। परिणाम एक वक्ररेखीय सौंदर्य है जो दर्शकों को गहराई से प्रभावित करता है और सामूहिक चेतना पर एक अमिट छाप छोड़ता है। राजेश मूलतः नई दिल्ली से हैं। उन्होंने 2012 में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से मूर्तिकला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। वर्तमान में ग्रेटर नोएडा में कला धाम स्टूडियो में कार्यरत हूं। उनका प्रमुख विषय "रिश्ता" है, काला संगमरमर उनका पसंदीदा माध्यम है। कभी-कभी वह संगमरमर को स्टेनलेस स्टील के साथ मिलाता है। लकड़ी भी उनके पसंदीदा माध्यमों में से एक है, लेकिन इस सामग्री की संभावना के कारण वह ज्यादातर संगमरमर का काम करते हैं। अपने विषय में उन्हें लगता है कि प्रकृति हमेशा एक जैसी होती है, केवल रूप बदलता है।अपने काम में इन्होंने प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को दिखाया है ,इनके अनुसार प्रकृति ही सब कुछ है ,सारा संसार मिट्टी से बना है और सब कुछ एक दिन मिट्टी ही हो जाना है। शुरू में इन्होने Job की थी लेकिन फिर इनको ये महसूस हुआ कि जॉब करना इनके लिए संभव नहीं है तो फिर इन्होंने ख़ुद को पूरी तरह से इस मूर्तिकला के कार्य में लग दिया। ललित कला अकादमी गढ़ी स्टुडियो में इन्होंने काफ़ी काम किया है। NDMS और कला परिषद के संयुक्त तत्वावधान एक बड़ा कैम्प दिल्ली में हुआ था जहां इन्होंने एक बुल बनाया था जो इन समय दिल्ली में ही स्थापित है ।