प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित वास्तुकला एवं योजना संकाय,डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के टैगोर मार्ग परिसर में लखनऊ विकास प्राधिकरण के सहयोग से हुए आठ दिवसीय समकालीन मूर्तिकला शिविर में सभी समकालीन मूर्तिकारों ने अपने अपने मूर्तिशिल्प को अंतिम रूप देकर शिविर को पूर्ण किया। "प्रकृति" विषय पर सभी मूर्तिकारों ने अपने भावनाओं को बखूबी पत्थर को तराश कर सुंदर सुंदर समकालीन मूर्तिशिल्प सृजित किया।
"शैल-उत्सव" राष्ट्रीय मूर्तिकला शिविर, पत्थर की अद्भुत कला को समर्पित एक उत्सव है, जिसका मुख्य उद्देश्य पारंपरिक और समकालीन मूर्तिकला को आमजन के करीब लाना है। इस अनूठे शिविर के दौरान बनाई गई मूर्तियों को लखनऊ के प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित किया गया है। इस प्रकार "स्कल्पचर पार्क" जैसी परिकल्पना साकार हुई है, जो न केवल शहर के सौंदर्यीकरण में योगदान दे रही है, बल्कि कला प्रेमियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण केंद्र बन गई है।
इस आयोजन में देशभर के पाँच राज्यों—नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात—से 10 समकालीन मूर्तिकारों (पुरुष और महिला) ने भाग लिया। ये कलाकार अपनी रचनात्मकता और विचारों को पत्थर में सजीव रूप देने में माहिर हैं। शिविर में प्रतिभाग करने वाले मूर्तिकारों में शामिल थे:
गिरीश पांडेय - लखनऊ, उत्तर प्रदेश पंकज कुमार - पटना, बिहार शैलेष मोहन ओझा - नई दिल्ली राजेश कुमार - नई दिल्ली संतों चौबे - नई दिल्ली अजय कुमार - लखनऊ, उत्तर प्रदेश अवधेश कुमार - लखनऊ, उत्तर प्रदेश मुकेश वर्मा - लखनऊ, उत्तर प्रदेश अवनी पटेल - सूरत, गुजरात निधि सभाया - अहमदाबाद, गुजरात
क्यूरेटर- डॉ वंदना सहगल,को-ओर्डिनेटर एंड डॉक्युमेंटेशन टीम - धीरज यादव, भूपेंद्र कुमार अस्थाना, रत्नप्रिया,जुवैरिया कमरुद्दीन एवं हर्षित, इसके अलावा राजस्थान से आए छह सहयोगी कलाकारों (कार्वर) ने भी शिविर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिविर में बनाई गई सभी कलाकृतियां नई और सृजनात्मक हैं, जो कलाकारों के विचारों और कल्पनाओं का मूर्त रूप प्रस्तुत करती हैं। यह आयोजन न केवल शहर के सौंदर्यीकरण के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रहा है, बल्कि यह कला प्रेमियों के लिए भी एक प्रेरणादायक पहल है।
इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य न केवल प्रदेश के कलाकारों को एक मंच प्रदान करना था, बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों के कलाकारों के बीच संवाद और विचारों का आदान-प्रदान सुनिश्चित करना भी था। इसके माध्यम से स्थानीय नागरिकों को कला के इस अद्वितीय अनुभव का आनंद लेने का अवसर प्रदान किया गया।
इस प्रकार की परिकल्पनाओं ने दुनिया भर में कई कलात्मक स्थलों को जन्म दिया है। "शैल-उत्सव" भी लखनऊ के सौंदर्यीकरण और समकालीन कला परंपरा को नई दिशा देने में मील का पत्थर साबित हो रहा है। यह आयोजन न केवल शहर के विकास में योगदान दे रहा है, बल्कि भारत और प्रदेश में मूर्तिकला परंपरा को संरक्षित और समृद्ध करने के लिए भी एक सफल प्रयास है।